• Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 39
    Nov 23 2024

    श्री भगवद गीता के अध्याय 18, श्लोक 39 में भगवान श्रीकृष्ण तामस सुख का वर्णन करते हैं। यह सुख आरंभ और परिणाम दोनों में आत्मा को मोह में डालने वाला होता है। यह आलस्य, प्रमाद और अज्ञान से उत्पन्न होता है और व्यक्ति को निष्क्रिय और भ्रमित करता है। जानें तामस सुख के प्रभाव और इससे बचने के उपाय।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 38
    Nov 23 2024

    श्री भगवद गीता के अध्याय 18, श्लोक 38 में भगवान श्रीकृष्ण राजस सुख का वर्णन करते हैं। यह सुख इंद्रियों और विषयों के संयोग से उत्पन्न होता है, जो प्रारंभ में अमृत जैसा प्रतीत होता है, लेकिन अंततः विष समान कष्टदायक हो जाता है। इस श्लोक में बताया गया है कि ऐसा सुख क्षणिक और अस्थायी होता है। जानें राजस सुख की वास्तविकता और इसके प्रभाव।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 37
    Nov 23 2024

    श्री भगवद गीता के अध्याय 18, श्लोक 37 में भगवान श्रीकृष्ण सात्त्विक सुख का वर्णन करते हैं। यह सुख प्रारंभ में कठिनाई भरा होता है, जैसे विष, लेकिन परिणामस्वरूप अमृत के समान मधुर होता है। यह सुख आत्मा और बुद्धि की प्रसन्नता से उत्पन्न होता है। इस श्लोक के माध्यम से जानें, सच्चे और स्थायी सुख की पहचान।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 36
    Nov 23 2024

    श्री भगवद गीता के अध्याय 18, श्लोक 36 में भगवान श्रीकृष्ण सुख के तीन प्रकारों का वर्णन करते हैं। वे अर्जुन से कहते हैं कि जो सुख अभ्यास से प्राप्त होता है और जिससे अंततः सभी दुख समाप्त हो जाते हैं, उसे समझने का प्रयास करो। इस श्लोक के माध्यम से जानें, जीवन में स्थायी सुख की प्राप्ति का मार्ग।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 35
    Nov 23 2024

    श्री भगवद गीता के अध्याय 18, श्लोक 35 में भगवान श्रीकृष्ण तामसी धृति का वर्णन करते हैं। यह धृति व्यक्ति को स्वप्न, भय, शोक, विषाद, और मद के प्रभाव में रखती है। ऐसी धृति आलस्य और प्रमाद से प्रेरित होती है, जो जीवन में उन्नति के मार्ग में बाधक बनती है। जानें, तामसी धृति के लक्षण और इसे दूर करने के उपाय इस श्लोक के माध्यम से।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 34
    Nov 23 2024

    श्री भगवद गीता के अध्याय 18, श्लोक 34 में भगवान श्रीकृष्ण ने राजसी धृति का वर्णन किया है। यह धृति धर्म, काम, और अर्थ के प्रति लगाव और फल की आकांक्षा से प्रेरित होती है। इसमें व्यक्ति अपने कार्यों में दृढ़ता तो रखता है, लेकिन उसका लक्ष्य सांसारिक उपलब्धियां और इच्छाओं की पूर्ति होता है। जानें, राजसी धृति के लक्षण और इसके प्रभाव इस श्लोक के माध्यम से। #भगवदगीता #गीता_श्लोक #राजसीधृति #कर्म #जीवन_लक्ष्य #कृष्ण_उपदेश #गीता_ज्ञान #आध्यात्मिक_जीवन #धर्म_काम_अर्थ


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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 33
    Nov 23 2024

    श्री भगवद गीता के अध्याय 18, श्लोक 33 में सात्त्विक धृति का वर्णन किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि जो धृति (दृढ़ता) योग और अनुशासन के माध्यम से मन, प्राण, और इंद्रियों की गतिविधियों को स्थिर और अविचलित बनाए रखती है, उसे सात्त्विकी धृति कहा जाता है। यह धृति व्यक्ति को आत्मज्ञान और परम शांति के मार्ग पर अग्रसर करती है। इस श्लोक के माध्यम से जानें सात्त्विक धृति के महत्व और गुण। #भगवदगीता #गीता_श्लोक #सात्त्विकीधृति #मन_संयम #योग #कृष्णउपदेश #आध्यात्मिक_ज्ञान #गीता_ज्ञान #जीवन_मार्गदर्शन



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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 32
    Nov 23 2024

    श्री भगवद गीता के अध्याय 18, श्लोक 32 में भगवान श्रीकृष्ण तामसी बुद्धि की व्याख्या करते हैं। इस श्लोक में बताया गया है कि जो बुद्धि अधर्म को धर्म और धर्म को अधर्म समझती है, और जो सभी चीजों को विपरीत रूप से देखती है, वह तामसिक बुद्धि कहलाती है। यह अज्ञान और मोह से ग्रसित होती है। जानें तामसी बुद्धि के लक्षण और इसे समझने का गूढ़ रहस्य।

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