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Pratidin Ek Kavita

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De: Nayi Dhara Radio
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Acerca de esta escucha

कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।Nayi Dhara Radio Arte Historia y Crítica Literaria
Episodios
  • Zooming | Ashfaq Hussain
    May 22 2025

    ज़ूमिंग |अशफ़ाक़ हुसैन


    देखूँ जो आसमाँ से तो इतनी बड़ी ज़मीं

    इतनी बड़ी ज़मीन पे छोटा सा एक शहर

    छोटे से एक शहर में सड़कों का एक जाल

    सड़कों के जाल में छुपी वीरान सी गली

    वीराँ गली के मोड़ पे तन्हा सा इक शजर

    तन्हा शजर के साए में छोटा सा इक मकान


    छोटे से इक मकान में कच्ची ज़मीं का सहन

    कच्ची ज़मीं के सहन में खिलता हुआ गुलाब


    खिलते हुए गुलाब में महका हुआ बदन

    महके हुए बदन में समुंदर सा एक दिल

    उस दिल की वुसअ'तों में कहीं खो गया हूँ मैं

    यूँ है कि इस ज़मीं से बड़ा हो गया हूँ मैं


    सहन: आँगन,

    शजर: पेड़, वृक्ष

    वुसअ'तों: विस्तार

    Más Menos
    2 m
  • Pagli Arzoo | Nasira Sharma
    May 21 2025

    पगली आरज़ू | नासिरा शर्मा

    कहा था मैंने तुमसे
    उस गुलाबी जाड़े की शुरुआत में
    उड़ना चाहती हूँ मैं तुम्हारे साथ
    खुले आसमान में
    चिड़ियाँ उड़ती हैं जैसे अपने जोड़ों के संग
    नापतीं हैं आसमान की लम्बाई और चौड़ाई
    नज़ारा करती हैं धरती का, झांकती हैं घरों में
    पार करती हैं पहाड़, जंगल और नदियाँ
    फिर उतरती हैं ज़मीन पर, चुगती हैं दाना
    सुस्ताती किसी पेड़ की शाख़ पर
    अलापतीं हैं कोई गीत प्रेम का
    जब उमड़ता है प्यार तो गुदगुदाती हैं
    अपनी चोंच से एक दूसरे को
    उसी तरह मैं प्यार करना चाहती हूँ तुम्हें
    लब से लब मिला कर, हथेली पर हथेली रखकर
    जैसे वह सटकर बैठते हैं अपने घोंसले में
    वैसे ही रात को सोना चाहती हूँ तुम से लिपट कर
    आँखों में नीले आसमान के सपने भर
    इस खुरदुरी दुनिया को सलामत बनाने के लिए।

    मैं उड़ना चाहती हूँ तुम्हारे संग ऊँचाइयों पर
    जहाँ मुलाक़ात कर सकूँ सूरज से
    उस डूबते सूरज को पंखों में छुपा लाऊँ
    लौटते हुए उगे चाँद के चेहरे को चूम कर
    चुग लाऊँ कुछ तारे चोरी-चोरी
    फिर उन्हें सजा दूँ धरती के अंधेरे कोनों में।

    Más Menos
    3 m
  • Hanso Ek Bachhe Ki Tarah | Amita Prajapati
    May 20 2025

    हँसो एक बच्चे की तरह | अमिता प्रजापति

    तुम प्यार को पृथ्वी
    मान कर
    मत घूमो हर्क्यूलिस की तरह
    मत झुकाओ इसके वज़न से
    अपनी गर्दन
    धीरे से सरका के इसे
    गिरा लो अपने पैरों में
    उछालो गेंद की तरह
    हँसो एक बच्चे की तरह...

    Más Menos
    1 m
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