इसे तुम कविता नहीं कह सकते (#poetry) Podcast Por Lokesh Gulyani arte de portada

इसे तुम कविता नहीं कह सकते (#poetry)

इसे तुम कविता नहीं कह सकते (#poetry)

De: Lokesh Gulyani
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Spoken word poetry in Hindi by Lokesh GulyaniCopyright Lokesh Gulyani Ciencias Sociales Filosofía
Episodios
  • Episode 40 - You फूल
    Jul 6 2025
    भटकना तुम्हारी स्वाभाविक प्रवृति थी, the natural you. इसमें तुम्हें आनंद मिलता था, अब ये कह रहे हैं कि भटकने से तुम्हें रोकेंगे। मैं मन ही मन हंस पड़ता हूं।
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    3 m
  • Episode 39 - बेवकूफ़ DNA
    Jun 17 2025
    मैं लाइटर रगड़ कर चिंगारी निकाल लेता हूं और उससे मानवजाति के पूर्वजों को श्रद्धांजलि देता हूं।
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    3 m
  • Episode 38 - बस दो मिनट
    May 14 2025
    कहीं-कहीं किसी दीवार, खिड़की या घर को देखकर ऐसा भी लगता है, जैसे मैं यहां पहले भी आया था। इस खिड़की से मैंने भी कभी बाहर को झांका था, घाटी में आवाज़ दी थी। इस दरवाज़े से बाहर निकलते वक्त, आवारा हवा मेरे भी बालों से टकराई थी। इस दीवार पर थक कर कभी मैंने भी पीठ टिकाई थी।
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