doha 27-31 hindi: Sumiran Podcast Por  arte de portada

doha 27-31 hindi: Sumiran

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“माला तो कर में फिरे, जीभी फिरे मुख माँहि । मनवा तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं ॥“   “माला फेरत जुग भया, मिटा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर ।“   “कबीर माला  काठ  की, कहि समझावे  तोही । मन ना फिरावे  आपना, कहा  फिरावे  मोहि ॥“   “मूंड मुंडावत दिन गए, अजहूँ न मिलया राम | राम नाम कहू क्या करे, जे मन के औरे काम ||”   “सेष सबूरी बाहिरा, क्या हज कावै जाई | जिनकी दिल स्यावति नहीं, तिनको कहाँ खुदाई ||”
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