Kavi Ka Ghar | Ramdarash Mishra Podcast Por  arte de portada

Kavi Ka Ghar | Ramdarash Mishra

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कवि का घर | रामदरश मिश्र


गेन्दे के बड़े-बड़े जीवन्त फूल

बेरहमी से होड़ लिए गए

और बाज़ार में आकर बिकने लगे


बाज़ार से ख़रीदे जाकर वे

पत्थर के चरणों पर चढ़ा दिए गए

फिर फेंक दिए गए कूड़े की तरह


मैं दर्द से भर आया

और उनकी पंखुड़ियाँ रोप दीं

अपनी आँगन-वाटिका की मिट्टी में

अब वे लाल-लाल, पीले-पीले, बड़े-बड़े फूल बनकर

दहक रहे हैं


मैं उनके बीच बैठकर उनसे सम्वाद करता हूँ

वे अपनी सुगन्ध और रंगों की भाषा में

मुझे वसन्त का गीत सुनाते हैं

और मैं उनसे कहता हूँ -

जियो मित्रो !

पूरा जीवन जियो उल्लास के साथ

अब न यहाँ बाज़ार आएगा

और न पत्थर के देवता पर तुम्हें चढ़ाने के लिए धर्म

यह कवि का घर है !

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