
ऋग्वेद मण्डल 1. सूक्त 24. मंत्र 6
No se pudo agregar al carrito
Add to Cart failed.
Error al Agregar a Lista de Deseos.
Error al eliminar de la lista de deseos.
Error al añadir a tu biblioteca
Error al seguir el podcast
Error al dejar de seguir el podcast
-
Narrado por:
-
De:
न॒हि ते॑ क्ष॒त्रं न सहो॒ न म॒न्युं वय॑श्च॒नामी प॒तय॑न्त आ॒पुः। नेमा आपो॑ अनिमि॒षं चर॑न्ती॒र्न ये वात॑स्य प्रमि॒नन्त्यभ्व॑म्॥ - ऋग्वेद 1.24.6
पदार्थ -
हे जगदीश्वर ! (क्षत्रम्) अखण्ड राज्य को (पतयन्तः) इधर-उधर चलायमान होते हुए (अमी) ये लोक-लोकान्तर (न) नहीं (आपुः) व्याप्त होते हैं और न (वयः) पक्षी भी (न) नहीं (सहः) बल को (न) नहीं (मन्युम्) जो कि दुष्टों पर क्रोध है, उसको भी (न) नहीं व्याप्त होते हैं (न) नहीं ये (अनिमिषम्) निरन्तर (चरन्तीः) बहनेवाले (आपः) जल वा प्राण आपके सामर्थ्य को (प्रमिनन्ति) परिमाण कर सकते और (ये) जो (वातस्य) वायु के वेग हैं, वे भी आपकी सत्ता का परिमाण (न) नहीं कर सकते। इसी प्रकार और भी सब पदार्थ आपकी (अभ्वम्) सत्ता का निषेध भी नहीं कर सकते॥
-------------------------------------------
(भाष्यकार - स्वामी दयानंद सरस्वती जी)
(सविनय आभार: www.vedicscriptures.in)
--------------------------------------------------------------
हमसे संपर्क करें: agnidhwaj@gmail.com
--------------------------------------------