ज़ख़्म की दास्ताँ Podcast Por  arte de portada

ज़ख़्म की दास्ताँ

ज़ख़्म की दास्ताँ

Escúchala gratis

Ver detalles del espectáculo

Acerca de esta escucha

जब हमारे ज़ख़्म एक से हों और हमारे दर्द की दास्तानें भी तो मरहम लगाने में इतनी झिझक सी क्यों उठती है ज़ेहन में ? इस कविता को सुनने के बाद खुद से ये सवाल ज़रूर कीजिएगा क्यूंकि इसका जवाब आपके अंदर ही घर करके बैठा है जिसे बस थोड़ी मोहब्बत की ज़रूरत है और शायद थोड़े मरहम की भी |

Todavía no hay opiniones